कॉलेज नियमों की उड रही धज्जिया
वैसे तो मुजफ्फरपुर के श्यामनंदन सहाय कॉलेज घोटाले को लेकर सुर्खियो में रहा है, वहा के शिक्षको ने प्रभारी प्रध्यापक के खिलाफ घरना प्रर्दशन भी किया, विवि को भी घेरा लेकिन पैरबी में अब्बल उक्त प्रभारी को कुछ नही हुआ, फिलहाल एक फर्जी लेखापाल जो 31 अगस्त को रिटायर्ड होने वाले है, उन्हें फिर से सेवा में लाने की हलचल तेज हो गई है, हालांकि कॉलेज में लेखापाल तो है, लेकिन उन्हें दो-तीन सालो से बैठाकर वेतन दिया जा रहा है, सूत्रो की माने तो प्रभारी प्रध्यापक दिल्ली गए है, वैसे भी वे कॉलेज में पिछले दो महीने से कम समय दे रहे है, और कॉलेज के सारे कार्यो को अपने एक चहेते प्रध्यापक के जिम्मे सौप दिया है, वैसे कॉलेज कई कानूनी फंदे में फंसा हुआ है, हाईकोर्ट और अन्य न्यायलय में उक्त कॉलेज के भ्रष्टाचार के मामले चल रहा है । कॉलेज के शासी निकाए के सचिव भी सारे मामले को जानते हुए भी खामोश है, राज्य सरकार ने उक्त कॉलेज को वितिय वर्ष 12-13, 14-15 और 16 सत्र के लिए साढे सात करोड अनुदान तो दे दी, लेकिन एक किश्त छोड वितरण में फर्जीवाडा उजागर होने के बाद विवि अधिकारियों ने दो किश्तो का अनुदान रोक दी है, हालांकि विवि ने इसके पहले एक किश्त 3 करोड कॉलेज में भेज दी थी, उसके वितरण में घोर अनियमितता उजागर होने के बाद विवि ने दूसरे किश्त की राशि फिलहाल विमुक्त करने से इंकार कर दिया है । कहा जाता है कि कॉलेज ने विवि को जो दूसरे किश्त अनुदान राशि विमुक्त करने के लिए सूची दी है, उसमें काफी हेराफेरी की गई है, वैसे कई कर्मियो को भी आए अनुदान का हकदार बना दिया गया है, जिनकी नियुक्ति 2020 में किए गए है, और राज्य सरकार ने जो राशि दी है, वह सत्र 14-15 के लिए दिए गए है, सूत्रो की माने तो कई वैसे कर्मी है, जो अन्य से वरीय है, उन्हें दरकिनार करते हुए उनसे से ज्यादा अनुदान राशि कनीय को दे दी गई है, और जिनके पद नही था, उन्हें फर्जी तरीके से 1991 का पद सजित मानते हुए अनुदान राशि दे दी गई है । कहा जाता है कि सरकार ने सिर्फ 1988 तथा 2005 में पद सजित किया है, एक और तथ्य उजागर हुए है कि विवि के सिंडीकेट ने एक साथ कॉलेज के 11 कर्मियो का पद सजित किया था, उसमें फर्जी लेखापाल भी शामिल है तो फिर उन्हें 1991 के आलोक में अनुदान क्यो दे दी गई । और उसी सूची के अन्य को कम राशि कैसे दी गई, यह एक गंभीर सवाल है, विवि इस विन्दु पर जांच करे तो जांच के बाद सच्चाई सामने आ जाएगी ।
वैसे कॉलेज में कर्मियो की कमी नही है, लेकिन कॉलेज के कई महत्वपूर्ण विभागो का कार्य रिटायर्ड कर्मियो से लिया जा रहा है, कहते है कि इन कर्मियो पर कॉलेज के खजाने से 30 से 40 हजार रूपए प्रतिमाह खर्च किया जा रहा है, जो एक गंभीर सवाल है । सूत्रो की माने तो उक्त लैब इंचार्य परीक्षा विपत्रो में भी हेराफेरी करने में महारथ हासिल कर रखा है, कॉलेज में महीने में तीन-चार परीक्षाएं आयोजित होती रहती है, अधिकांश प्रतियोगी और अन्य परीक्षाओ में उक्त लेखा पाल ही गार्डो की सूची तैयार करते है, जिसमें कॉलेजो के स्टाफ के बदले किसी और को गार्डिंग में रखकर हजारो रूपए की हेराफेरी कर लिया जाता है, जिसके विरोध में कुछ कर्मियो ने अवाज उठाई तो उन्हे पावर के बदौलत खामोश कर दिया गया, हैरत की बात तो यह है कि एक तरफ कॉलेज वित रहित है और वही दूसरी ओर प्रभारी प्रध्यापक के भेजे गए प्रस्ताव पर बिना सोचे समझे कॉलेज के शासी निकाए के सचिव भी आंख मूंद ठप्पा लगा देते है, वहा के एक वरीय प्रध्यापक ने विवि प्रशासन से इस मामले में सख्त कार्रवाई की मांग की है।