आरटीआई कानून तो बने पर अल्म कहा

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आयोग भी कुछ नही कर रहा
राज्य के एक मंत्री का यह कहावत सत्य है कि राज्य के स्वायत संस्था पर सरकार का सीधे कोई नियंत्रण नही है तो फिर वहा आरटीआई कानून की व्यवस्था क्यो दी। राज्य सरकार ने कानून तो बना दिए, लेकिन यह कानून अफसरो के हिटलरशाही के कारण सरजमीन पर उतरने के बदले हवा में रह गए, मुजपफरपुर के बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के आरटीआई विभाग का कहानी कुछ ऐसा ही बाया कर रही है, वहा के आरटीआई विभाग में आवेदक अजय कुमार सिन्हा ने बांछित सूचना के लिए तीन साल पूर्व दिनांक उन्नतीस पांच सत्रह को आवेदन दिया, तत्कालीन कुलपति ने अपीलीय प्राधिकार के हैसियत से दिनांक आदेश दिनांक सोलह, दस सत्रह को कुलसचिव को आदेशित करते हुए कहा, आवेदक को पंद्रह कार्य दिवसों के अंदर सारी सूचनाएं उपलब्ध करा दे। लेकिन अभी तक कोई सूचनाएं आवेदक को नही दी गयी। इस संदर्भ में आवेदक कुलसचिव कर्नल अजय राय से मिले तो सारे कागजातो को देखने के बाद कहे कि सारी सूचनाएं आवश्य दी जाएगी, लेकिन वे भी खामोश हो गए, आवेदक ने इसकी शिकायत तीन महीने पहले बिहार के सूचना आयोग से की है, लेकिन वहा से अभी तक आवेदक को कोई जबाव नही मिला है, आवेदक ने बताया कि जिसके संबध में सूचना मांगी गयी है, वह व्यक्ति विश्वविद्यालय में कार्यरत है और उसकी पहुंच अफसरो तक है। इस मामले में तो स्थापना विभाग के एक कर्मचारी खुद पार्टी बन गए है। उक्त कर्मी ने तो आरटीआई अफसर को सूचना नही देने का नियम भी बाता दिए, लेकिन आरटीआई अफसर ने संचिका पर उनके कामेंट के जबाव में लिखा कि अधिनियम के अंतर्गत जो नौकरी में कार्यरत है, उनकी सूचना दी जा सकती है। आवेदक इसके खिलाफ हाईकोर्ट में जाने की तैयारी कर रहा है।

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