तो मामला पहुंचा हाईकोर्ट अधिवक्ता के पास
बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने कर्मियो के आगे धुटने टेक दिए है, श्री उदय नारायण प्रसाद की नियुक्ति विवि में 1984 में अनुकंपा पे तो हुई, लेकिन उनके नियुक्ति रिकार्ड से सारे साक्ष्य गायब कर दिए गए है, सारे रिकार्ड गायब करने में विश्वविद्यालय के कुछ कर्मियो का हाथ बताया जा रहा है, विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा0 अमरेन्द्र यादव ने सुनवाई के बाद आरटीआई अधिनियम के तहत तत्कालीन कुलसचिव को 29-5-17 को सारी सूचनाएं आवेदक को 15 दिनो के अंदर उपलब्ध कराने का आदेश तो दिए, लेकिन चार साल हो गए, आवेदक को कोई सूचना नही दी गई, मुजपफरपुर के दो वरीय अधिवक्ताओ ने कुलपति और कुलसचिव को 5 बिन्दुओ पर जबाब देने के लिए पहली नोटिस 28 दिसम्बर 2020 को दिया, लेकिन विश्वविद्यालय के दोनो अधिकारियों ने कोई जबाब नही दी, फिर कुलसचिव को 20 जनवरी 21 को नोटिस दिए गए, जिसकी प्रतिलिपि राज्य के चांसलर को भी दिए गए है, लेकिन कुलसचिव ने इस नोटिस का भी कोई जबाब नही दिए, हालांकि पत्रकारो से बातचीत के दौरान कुलसचिव ने यह स्वीकार किया कि उन्हें नोटिस तो मिली है, जबाब भेजे जा रहे है, वरीय अधिवक्ता रजनीकांत ने बताया कि उन्हें कुलसचिव ने अभी तक कोई जबाब नही भेजा है, इसलिए प्रथम दृष्टता मामला संगीन लगता है। और विश्वविद्यसल के अधिकारी कर्मियो के दबाब में है। केस फाईल करने के लिए साक्ष्य के साथ सारे रिकार्ड पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता के पास भेज दिया गया है, एक सवाल पर अधिवक्ता ने कहा, मुजपफरपुर के अदालत में भी विश्वविद्यालय अधिकारियों/कर्मियो के खिलाफ बहुत जल्द मुकादमा दायर होगा। क्योंकि उदय नारायण प्रसाद ने पटना हाईकोर्ट में दायर एक रिट में स्वीकार किया है कि उनकी नियुक्ति अनुकंपा पे हुई, और तो और श्री प्रसाद ने सीतामढ़ी के एक अदालत अमें दिए बयान में अनुकंपा की बात कबूल की है तो वहा के अधिकारियों ने कोर्ट को कैसे गुमराह कर दी, यह एक गंभीर मसला है। अनुकंपा नियुक्ति में मां का आवेदन और परिवार के सभी सदस्यो का अनापति प्रमाण पत्र होना चाहिए, जो रिकार्ड से गयाब है, इसका जबाब तो विश्वविद्याल को देना ही होगा।